Hallo doston kaise hain app.
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नई दिल्ली. शेयर बाजार (Stock Market) ने अपने निवेशकों को पिछले कुछ दिनों में तगड़ा रिटर्न (Earn money) दिया है. बाजर में बहुत कीमत वाले कुछ ऐसे शेयर (penny stock) हैं जिसने निवेशकों के पैसों को लाखों में बदल दिया है. आज हम आपको एक ऐसे पेनी स्टॉक के बारे में बता रहे हैं जिसने काम समय में अपने निवेशकों को मोटा रिटर्न देकर मालामाल (stock tips) कर दिया. ये स्टॉक है टेक्सटाइल मैनुफैक्चरर कंपनी दिग्जाम (Digjam)
दिग्जाम के स्टॉक (Digjam stock price) ने एक साल में 4,412 फीसदी रिटर्न दिया है. 22 दिसंबर, 2020 को 3.90 रुपये पर बंद हुआ जो 22 दिसंबर 2021 को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) में 176 रुपये के ऑल टाइम हाई पर पहुंच गया.
1 लाख बन गए 45 लाख रुपये
अगर किसी निवेश ने एक साल पहले दिग्जाम के शेयरों में एक लाख रुपये की रकम लगाई होती तो आज यह रकम 45.12 लाख रुपये हो जाती. बीएसई पर कल सुबह यह शेयर 4.98 फीसदी की तेजी के साथ 176 रुपये पर कारोबार कर रहा था. कंपनी के शेयरों में 4.99% की तेजी है. इसी के साथ इस टेक्सटाइल मैनुफैक्चरर कंपनी का मार्केट कैप बढ़कर 35.20 करोड़ रुपये हो गया.

Stoke Market से कमाए करोड़ों
दृढ़ निश्चय का फल (Success of Your Determination
Hallo doston kaise hain app
“हां-हां, जरूर खरीदना। अब मैं जल्दी से जाकर वह रुपया निकाल लाता हूं। तुम तैयार हो जाओ, हम आज ही मेला देखने चलेंगे।”
फिर रामसिंह राजमहल के पिछवाड़े वाली दीवार से रुपया निकालने चल दिया। उस रुपए को रामसिंह अपने लिए बड़ा भाग्यशाली समझ रहा था। उसी की बदौलत उसकी शादी लाली से हुई थी। उसके लिए तो सारी दुनिया की दौलत एक तरफ और वह रुपए एक तरफ था।
रामसिंह तेजी से पुराने महल की ओर भागा जा रहा था। वह जिस सड़क पर भागा जा रहा था, वह जंगल में स्थित पुराने महल से जा मिलती थी। रास्ते में एक ओर नया राजमहल था। जिस समय रामसिंह भागा जा रहा था, उसी समय महाराज महल की छत पर खड़े अपने मंत्रियों से मंत्रणा कर रहे थे। अचानक उनकी नजर रामसिंह पर पड़ी। वह यह देखकर हैरान हुए कि पसीने से तर-बतर यह युवक भरी दोपहरी में कहां भागा जा रहा है- वह भी जंगल वाले रास्ते पर।
“मंत्रीजी!”
“जी महाराज!”
“इस युवक को देख रहे हो जो भरी दोपहर में पसीने से तर-बतर जंगल की ओर भागा जा रहा है।”
“देख रहा हूं महाराज!”
“इसे फौरन पकड़वाकर हमारे सामने पेश कीजिए। जंगल की ओर भागे जाने का इसका अवश्य ही कोई खास मकसद है। हम जानना चाहते हैं कि यह बदहवास-सा क्यों और कहां भागा जा रहा है। अपनी प्रजा के सुख-दुख का ख्याल रखना हमारा कर्तव्य है।”
“जो आज्ञा महाराज।”
मंत्री ने तुरंत सिपाहियों को आदेश दिया। कुछ ही देर बाद सिपाहियों ने रामसिंह को पकड़कर महाराज के सामने उपस्थित कर दिया। डरा हुआ रामसिंह हाथ जोड़े राजा के सामने खड़ा था।
“युवक! तुम कौन हो और इस प्रकार चिलचिलाती धूप में बेतहाशा कहां भागे जा रहे थे?”
“महाराज! मेरा नाम रामसिंह मसकी है। मैं एक बड़े ही आवश्यक कार्य से जा रहा था।”
“वह आवश्यक कार्य क्या है जिसके आगे तुम्हें धूप-छांव की भी परवाह नहीं है।”
“महाराज! दरअसल बात यह है कि पुराने महल के पिछवाड़े वाली दीवार में मैंने अपना धन छिपा रखा है। आज अपनी पत्नी को मेला घुमाने के लिए मैं अपना वही धन निकालने जा रहा हूं।”
“धन?” महाराज चौंके।
“जी महाराज!”
“तुम्हारे पास कितना धन है जो तुम इस कदर भागे जा रहे हो?” महाराज ने हैरानी से पूछा- “क्या दस-पांच हजार मोहरें है?”
“नहीं महाराज!”
“हजार-दो हजार।”
“इतना भी नहीं महाराज!” रामसिंह बोला- “मेरा धन तो सिर्फ चांदी का एक सिक्का है।”
“क्या?” महाराज पुन: चौंके- “केवल चांदी का एक सिक्का?”
“जी महाराज! वही मेरा खजाना है जिसे मैंने काफी दिनों से संजोकर रखा हुआ है।”
महाराज हैरानी से रामसिंह का चेहरा देखे जा रहे थे। रामसिंह का भोलापन देखकर उन्हें उस पर तरस आने लगा था।
जबकि रामसिंह कह रहा था- “उस एक सिक्के से ही मैं अपनी पत्नी को मेला दिखाकर खुश कर दूंगा। मेरी पत्नी के सिवा मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है महाराज!”
“यदि ऐसी बात है तो हम तुम्हें अपने खजाने से चांदी का एक सिक्का दिला देते हैं। उसे लेकर तुम घर जाओ और अपनी पत्नी के साथ मेला देख आओ। एक सिक्के के लिए इस चिलचिलाती धूप में दौड़ने से क्या फायदा?”
“महाराज! आज आप मुझ पर मेहरबानी करके मुझे एक रुपया दे रहे हैं, यह तो बड़ी खुशी की बात है। मगर फिर भी मैं अपना वह रुपया लेने अवश्य जाऊंगा। वह रुपया मेरे लिए बड़ा भाग्यशाली हैं।”
“देखो रामसिंह! इस तपती दोपहरी में जंगल की ओर जाने का विचार त्याग दो। तुम हमारी प्रजा हो और हम राजा। अपनी प्रजा के सुख-दुख का ख्याल रखना हमारा कर्तव्य है। तुम्हें चांदी का एक सिक्का कम लगता है, तो हम दो सिक्के दिलवा देते हैं।
“आप हमारे अन्नदाता हैं महाराज! आप कृपा करके जो भी देंगे, मैं सहर्ष स्वीकार कर लूंगा-किंतु… ।”
“किंतु क्या?”
“मैं अपना वह रुपया लेने जंगल अवश्य जाऊंगा।”
“यदि हम तुम्हें सौ मोहरें दे तो क्या तब भी… ?”
“हां महाराज! तब भी।”
“अजीब देखो बेवकूफ और जिद्दी युवक है। सौ मोहरें लेकर भी अपना एक सिक्का छोड़ने को तैयार नहीं। आखिर ऐसी क्या विशेषता है उस सिक्के में।” सोचते हुए महाराज ने पूछा- “अरे युवक! तेरे उस सिक्के की क्या विशेषता है जो सौ मोहरों के बदले भी तु उसका मोह छोड़ने को तैयार नहीं।”
“महाराज मैं बता चुका हूं कि यहां मेरे लिए वह सिक्का बड़ा ही भाग्यशाली है। यदि मुझे वह सिक्का ना मिला होता तो मेरी शादी भी नहीं हुई होती। यदि मैं शादी न करता तो मुझे लाली जैसी सुंदर और सुशील पत्नी भी नहीं मिली होती। इसलिए महाराज! वह रुपया मेरे लिए बहुत कीमती है।”
महाराज ने सोचा- ‘यह युवक धुन का पक्का है, मगर इमानदार है या लालची, इसके लिए इसकी परीक्षा लेनी चाहिए।’ अत: वह बोले- “रामसिंह! यदि हम तुम्हें हजार मोहरें दें, तो क्या तुम क्या तब भी तुम उस रुपए को लेने जाओगे।?”
“हां महाराज! उस रुपए को तो मैं अवश्य लेने जाऊंगा। क्योंकि वह रुपया मैंने अपनी पत्नी पर ही खर्च करने का निर्णय लेकर छुपाया था। अब उसी रुपये से में उसे मेला घुमाऊंगा।”
“मगर जब हम तुम्हें उस रुपए से हजार गुना अधिक धन दे रहे हैं, तो तुम उस रुपए का लालच क्यों नहीं देते?”
“क्षमा करें महाराज! यदि मैं अधिक धन के लालच में उस रुपए का मोह छोड़ दूंगा, तो जीवन भर मेरी आत्मा पर एक बोझ-सा बना रहेगा।”
कहते हैं तीन हठ बहुत बुरी होती हैं- राजहठ, बालहठ और योगहठ।
जहां रामसिंह अपने बालहठ पर कायम था कि पत्नी को उसी रुपये से मेला दिखाऊंगा, वहीं महाराज के मन में भी राजहठ की भावना उत्पन्न हो गई थी कि चाहे जो भी हो, चाहे कितनी भी भारी कीमत क्यों न चुकानी पड़े, इस युवक को वह रुपया लेने नहीं जाने दूंगा। यह सोचकर वह बोले- “देखो रामसिंह! यह हमारी हठ है कि हम तुम्हें वह रुपया लेने नहीं जाने देंगे। इसके बदले हमें भले ही कितने भी भारी कीमत क्यों ना चुकानी पड़े। उस रुपए के बदले, हम तुम्हें मुंहमांगी दौलत देने को तैयार हैं।”
“दौलत इंसान की बुद्धि भ्रष्ट कर देती है महाराज! मैं तो मेहनतकश इंसान हूं, हम लोगों को तो पेट भरने लायक धन मिल जाए, वही बहुत है। आपकी भाई-से-भारी दौलत भी मुझे वो खुशी नहीं दे सकती, जो खुशी मुझे उस रुपए को पाकर प्राप्त होगी।”
“हम तुम्हारे विचार जानकर बहुत खुश हुए रामसिंह। तुम लालची नहीं हो तुम जैसे नौजवान जिस राज्य में हों, वह राज्य अवश्य ही उन्नति करता है। हम खुश होकर तुम्हें अपने राज्य का आधा भाग इनाम में देते हैं। मगर शर्त हमारी वही है कि तुम वह रुपया लेने नहीं जाओगे।”
“ओह!”
रामसिंह समझ गया कि महाराज जिद पर अड़ गए हैं। यदि उसने उस रुपए कोई लाने की जिद नहीं छोड़ी तो उसे इनाम के बदले दण्ड भी दिया जा सकता है। अतः अब तो बेहतरी इसी में है कि कोई ऐसी युक्ति लड़ानी चाहिए कि महाराज का कोप-भाजन भी न बनना पड़े और वह रुपया भी मिल जाए। अतः वह बोला-“महाराज! आपकी आज्ञा सिर माथे पर, किंतु आप मुझे राज्य का वही हिस्सा दें जो मैं चाहता हूं।”
“शाबाश! यह हुई न कोई बात। प्रजा को सदा अपने राजा की आज्ञा का पालन करना चाहिए। बोलो, तुम्हें हमारे राज्य का कौन-सा हिस्सा स्वीकार है। हम वचन देते हैं, तुम्हें वही हिस्सा दिया जाएगा।”
“मुझे उतरी हिस्सा चाहिए महाराज!”
“ओह रामसिंह!! तुम सचमुच बहुत बुद्धिमान हो। अपने बुद्धिबल से तुमने हमारा आदेश मानकर हमें भी संतुष्ट कर दिया और अपना वह रुपया भी प्राप्त कर लिया। क्योंकि उत्तरी हिस्से में ही वह पुराना महल है जिसमें तुमने अपना एक रुपया छुपा रखा है। तुम बुद्धिमान ही नहीं, दृढ़ निश्चय भी हो। तुम जैसे युवक सदैव उन्नति करते हैं। हमें गर्व है कि तुम जैसा होनहार युवक हमारे राज्य में पैदा हुआ।”
“और वह भाग्यशाली रुपया भी महाराज! जिसके कारण मैंने आपकी खुशी से आपके राज्य का आधा हिस्सा भी पा लिया। अब आप ही बताएं कि मैं उस भाग्यशाली रुपए का मोह कैसे छोड़ सकता हूं।”
रामसिंह के दृढ़ निश्चय और बुद्धिमता के समक्ष नतमस्तक हो गए। उसी दिन रामसिंह को राज्य का आधा हिस्सा देकर वहां का राजा बना दिया गया। राजा बनते ही रामसिंह ने सबसे पहले पुराने महल की दीवार से अपना वह रुपया प्राप्त किया और उसे चुमकर माथे से लगाकर बोला- “तुम बहुत शुभ हो। तुम्हारे कारण ही मेरे नसीब जाग गए मित्र! यदि तुम मुझे न मिलते तो न सुंदर और सुशील पत्नी मिलती और न ही राज्य।”
कहानी की प्रेरक बातें-
किसी ने सत्य ही कहा है- धुन के पक्के और दृढ़ निश्चय मनुष्य उम्मीद से अधिक पा लेते हैं, लेकिन प्राप्त किया जाने वाला लक्ष्य शुभ एवं निस्वार्थ हो।
इसका एक सरल सा उदाहरण हम sir Elon Musk के जीवन को लेकर देख सकते हैं। SpaceX और Tesla Motors के संस्थापक जिन्होंने न जाने कितनी ही बार असफलता प्राप्त किया वह भी लगातार फिर भी वे अटल रहे और दृढ़ निश्चय गुण की वजह से ही वे आज दुनिया के दूसरे सबसे अमीर और सबसे सफल व्यक्ति बन पाए।
दृढ़ निश्चय एक ऐसी शक्ति है
जिसका कोई तोड़ नहीं है।
Important stories of life’s.
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दृढ़ निश्चय का फल | Success of Your Determination
रामसिहं मशकी शहर में मशहूर था। वह गंगा नदी के तट पर ही अपनी बिरादरी के साथ रहता था। उसका काम सुबह-सुबह गंगा नदी से अपने मशक में पानी भरना और धनवान लोगों के घरों तक पहुंचाना था।
एक दिन रामसिंह सुबह-सुबह मसक उठाए बस्ती की ओर बढ़ा जा रहा था कि अचानक उसकी नजरें धरती पर पड़े चांदी के एक रुपये पर पड़ी।
“अरे वाह! सुबह-सुबह चांदी का रुपया। हे मां लक्ष्मी! आज तो तुमने मुझ गरीब पर बड़ी कृपा की।”
राम सिंह का खुशी का ठिकाना नहीं था। लेकिन अगले ही पल वह सोच में डूब गया। समस्या यह थी कि अब उस रुपये को रखे कहां? उसकी झोपड़ी तो सुरक्षित नहीं थी क्योंकि उसमें दरवाजा नहीं था। बस एक पर्दा-सा द्वार पर लटका रहता था।
“हे प्रभु! इस रुपए को कहां रखूं जो यह सुरक्षित रह सके। इस रुपए को तो मैं किसी खास मौके पर ही खर्च करना चाहता हूं, मगर तब तक इसकी सार-संभाल कैसे करूं?” रामसिंह चिंता में डूब गया।
अभी रामसिंह की शादी नहीं हुई थी। उसके मन में आया क्यों न मैं ही यह रुपया कहीं छिपाकर रख दूं और अपनी शादी पर इसे खर्च करुं। शादी के बाद इससे अपनी पत्नी को श्रृंगार का सामान लाकर दूंगा तो वह बहुत खुश होगी। यह निर्णय रामसिहं ने कर लिया कि वह इस रुपये का क्या करेगा, लेकिन पहले वाली समस्या जस की तस थी कि इस रुपए को कहां रखा जाए।
अचानक उसके मन में ख्याल आया कि क्यों ना मैं इस रुपए को पुराने राजमहल के पिछवाड़े वाली दीवार में कहीं छुपा दूं। वहां कोई आता-जाता भी नहीं है। यही सोचकर रामसिंह महल की ओर चल दिया।
पुराना महल नगर से काफी दूर था और वहां अब आबादी भी नहीं थी। रामसिंह महल के पिछवाड़े पहुंचा, वहां एक जगह से दीवार थोड़ी टूटी हुई थी। राम सिंह ने एक-दो ईंटें हटाईं और अपने पतके (सिर पर बांधने वाले कपड़े) में से थोड़ा-सा कपड़ा फाड़कर रुपया उसमें लपेटकर एक सुराख में रख दिया। फिर जो ईंटें हटाईं थीं, उन्हें वैसे ही लगा दिया ताकि कपड़े की पोटली किसी को दिखाई न दे।
“हां, अब ठीक है। यहां रुपया सुरक्षित है- न तो चोरी का डर और न ही आंधी-तूफान का खतरा।”
रामसिंह चांदी का एक रुपया पाकर स्वयं को काफी अमीर समझ रहा था। अब रामसिंह को अपनी शादी का इंतजार था कि कब उसकी शादी हो और कब वह उस रुपये को निकालकर खर्च करे।
अचानक रामसिंह की आंखों के सामने उसकी बिरादरी के सीताराम की बेटी लाली का चेहरा थिरकने लगा। वह लाली को मन-ही-मन चाहता था और उससे शादी भी करना चाहता था। मगर सीता काका से बात करने की उसकी हिम्मत नहीं होती थी। उसने सोचा कि क्यों ना लालाराम पंसारी की मार्फत बात आगे बढ़ाई जाए। यह ख्याल मन में आती ही वह उल्टे पैर लालाराम पंसारी की दुकान की ओर चल दिया।
“राम-राम लाला जी।”
“अरे रामसिंह! भई, आज सुबह-सुबह यहां कैसे? काम-धंधे पर नहीं गए क्या?”
“क्या बताऊं लालाजी! घर के चौका-बर्तन से फुर्सत मिले तो काम-धंधे की बात सोचूं। अब तो मन में आता है कि तुम्हारा कहा मान ही लूं। चौका-बर्तन से फुर्सत मिल जाएगी तो मन लगाकर काम भी करुंगा।”
“मेरी बात… ।” लाला चौंका “मेरी कौन-सी बात?”
“अरे वही, शादी की बात। तुमने कहा नहीं था कि अब तुझे शादी कर लेनी चाहिए।”
“अच्छा-अच्छा शादी। अगर तू हां करें तो सीता राम काका से आज ही बात करुं। कई बार कह चुके हैं कि लाला कोई अच्छा-सा और मेहनती लड़का बताओ।”
“अरे तो मैं कौन-सा कम मेहनती हूं लाला जी। आप बात पक्की करवा दो तो मैं चट मंगनी और पट ब्याह कर लूं।”
और फिर लालाराम पंसारी ने सीताराम काका से बात करके उसकी बेटी लाली की शादी की बात रामसिहं से पक्की करवा दी। कुछ ही दिनों बाद दोनों की शादी भी हो गई।
शादी होकर लाली रामसिंह की झोपड़ी में आ गई।
दोनों पति-पत्नी खुशी-खुशी अपने दिन गुजारने लगे। शादी के बाद रामसिहं लाली के प्यार में ऐसा खो गया कि उसे चांदी के उस रुपये का ध्यान ही न रहा। वह तो बस काम पर जाता और जो दो-चार पैसे कमाकर लाता, वह लाली के हाथ पर रख देता।
Bharat ke प्रसिद्ध mandir
आषाढ़ के महीने में गंगा तट पर हर साल मेला लगा करता था। एक दिन लाली ने उसके गले में बाहें डालकर प्यार से कहा- “सुनो जी! क्या मुझे मेला घुमाने नहीं ले चलोगे?”
यह सुनकर रामसिंह घर से बाहर आ गया। वह चिंता में डूब गया कि आखिर लाली को मेला घुमाने के लिए पैसे कहां से आएंगे।
“अरे र र र!” अचानक रामसिंह खुशी से उछल पड़ा।
एकाएक उसे उस रुपए की याद आई जिसे शादी से कुछ ही दिन पहले वह पुराने राजमहल की दीवार में छिपा आया था। उस रुपये को पाकर ही तो उसके मन में शादी का विचार आया था लेकिन शादी के बाद गृहस्ती के चक्कर में वह उस रुपए को भूल ही गया था। वह तेजी से अपनी झोपड़ी में गया और लाली को गोद में भरकर खुशी से नाचने लगा।
“अरे…रे…यह क्या करते हो। छोड़ो मुझे। अभी तो मेला जाने के नाम पर तुम्हारी नानी मर गई थीं और अब ऐसे खुश हो रहे हो जैसे तुम्हारे हाथ कोई खजाना लग गया हो।”
“खजाना ही हाथ लग गया, समझ लो।” कहते हुए उसने लाली को नीचे उतार दिया और रुपये वाली पूरी बात बता दी।
“अरे वाह। चांदी के एक रुपये से तो हम काफी चीजें खरीद सकते हैं।” खुश होकर लाली बोली- “देखो जी! मैं तो अपने कानों के झुमके जरूर खरीदूंगी।”

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हैलो दोस्तों कैसे हैं आप मुझे उम्मीद है आप अच्छे होंगे.
आज मैं लेके आया हूँ आप के लिए बहुत ही अच्छा टॉपिक पंखे को कैसे ठीक करें पंखे में कैपिटल कैसे लगाएं
यदि पंखा चलो चल रहा है तो और उसमें कोई आवाज नहीं है तो समझ लें की आप कैपिटल कैपिस्टर वीक हो गया है
उसे तुरंत चेंज कर दे और ये समस्या जो पंखा धीरे चल रहा है खत्म हो जाएगी ऐसा करने के लिए सबसे पहले घर की महसूस ऑफ ऑफ कर दे उसके बाद कैपिस्टर में दो तार लगे होंगे वहाँ से हटा कर नए कैपिटल दोनों तर लगा दे और टेप लगा दे बस पंखा चालू देखें आप देखेंगे कि आपका पंखा पहले से बेहतर स्पीड दे रहा आज के युग में पंखी कैपिस्टर चेंज करने के ₹200 लेते हैं आप इसे फ्री में कर सकते hain. Or adhik जानकारी के लिए आप हमारे ईमेल अड्रेस पर अपने सवाल पूछ सकते हैं धन्यवाद
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Capestor कैसे चेक करें.capestor को चेक करने के लिए सबसे पहले capestor दो तार को हल्का सा बोर्ड के न्यूट्रल फेस में टच करके निकाल ले उसके बाद उसके uske *dono taro को पकड़कर तारो को आपस में टच करें टच करते ही उन में शार्ट सर्किhttps://youtube.com/channel/UCmQ4R5ZvtMpK9GXm4DxfLWQट होगा तथा कैमिस्टर पटपट ठीक की आवाज करेगा यदि आवाज स्लो हो तो कैपिटल वीक है यदि आवाज जो जोर से आए तो capestor ठीक है फिर उसे चेंज करने की जरूरत नहीं है

Pankhe ke conception kaise kaire.https://youtube.com/channel/UCmQ4R5ZvtMpK9GXm4DxfLWQ
दोस्तो main ak electronics हूँ .और Blogging मैं अब mujhe मज़ा आता है. Tatah हम apni jankari dusro tak shiar bhi kar sakte hain.
Shiling fans ke conection karna.
Shiling fan ke canection kaise kare——-1 .chat ke pankhe main hame sabse pahle do tar दिखाई dete हैं . Jab hum use छत se उतारते हैं. एक तार (-) ke or ak tar(+) ka होता है जिसमें एक तार मैं करेंट होता है और दूसरे तार मैं अर्थ होता है.

लोग चाहते है की आप बेहतर करे,
लेकिन ये भी तो सत्य है की वो
कभी नहीं चाहते की आप उनसे बेहतर करे !!
असफलता के समय आंसू पोछने वाली एक ऊँगली
उन दस उँगलियों से अधिक महत्वपूर्ण है,
जो सफलता के समय एक साथ ताली बजाती है !!
जो आसमान को छूने का हौंसला रखते है,
वो जमीं पे पड़ने वाले क़दमों के निशाँ नहीं गिना करते !!
रास्ते पर कंकड़ ही कंकड़ हो तो भी
एक अच्छा जूता पहनकर उस पर चला जा सकता है,
लेकिन एक अच्छे जुते के अन्दर एक भी कंकड़ हो तो
एक अच्छी सड़क पर कुछ कदम चलना भी मुश्किल है,
अर्थात हम बहार की चुनोतियों से नहीं
बल्कि अन्दर की कमजोरियों से हार जाते है !!
जो केवल अपना भला चाहता है वह दुर्योधन है,
जो अपनों का भला चाहता है वह युधिष्ठिर है,
और जो सबका भला चाहता है वह श्री कृष्ण है !!
माँ और बीवी दोनों को हंमेशा बेपनाह प्यार ओर इज्जत दो,
एक तुम्हे इस दुनिया में लाइ है,
और दूसरी सारी दुनिया को छोड़कर तुम्हारे पास आई है !!
जिसमे धीरज है और जो महेनत से नहीं घबराता,
कामयाबी उसकी दासी है !!
शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है,
एक शिक्षित व्यक्ति हर जगह सम्मान पाता है,
शिक्षा सौन्दर्य और यौवन को परास्त कर देती है !!

पैसा घर तक साथ रहेगा और परिवार स्मशान तक,
जबकी कर्म और धर्म इस लोक के साथ परलोक में भी साथ रहेगा !!
अपनी विशेषताओ का प्रयोग करो,
जीवन के हर कदम पर प्रगति का अहेसास होगा !!
अगर आप उन बातों और परिस्थतियों की वजह से,
चिंतित हो जाते हो जो आपके नियंत्रण में नहीं है,
तो इसका परिणाम समय की बरबादी एवं भविष्य में पछतावा है !!


Hallo doston kaise hain app
Mera name mahender Singh h
Apko yah blog kaisa laga please comment on mahendestb@gmail.com,
Blogging ak platform h jaha se hum bahut achchi v ghiyan vardhak jankari prapt karsakte hain.
प्यार एक ऐसी चीज है जो इंसान को गिरने नहीं देती,
और नफरत एक ऐसी चीज है जो इंसान को उठने नहीं देती !!
महानता कभी ना गिरने में नहीं,
बल्कि हर बार गिरकर उठने में है !!
सफलता हमारा परिचय दुनिया को करवाती है,
और असफलता हमें दुनिया का परिचय करवाती है !!
अगर अँधा अंधे का नेतृत्व करेगा,
तो दोनों खाई में गिरेंगे !!
लक्ष्य पर आधे रस्ते तक जाकर कभी वापस न लौटे,
क्यूंकि वापस लौटने पर भी आधा रास्ता पार करना पड़ेगा !!
Yah bat 100% satiy h. Yah mera parsnal anubhav h. Kisi bhi kam ko ahura mat chocolate, nahi to vah puri jindgi paresan katega.
हमें किसी भी ख़ास समय का इंतज़ार नहीं करना चाहिए,
बल्कि अपने हर समय को ख़ास बनाने की पूरी कोशिश करनी चाहिए !!
वक्त और हालात सदा बदलते रहते है,
लेकिन अच्छे रिश्ते और सच्चे दोस्त कभी नहीं बदलते !!
जिसकी आँखों पर अहंकार का पडदा पडा हो,
उसे ना तो दूसरों के गुण दिखाई देते है और ना ही अपने अवगुण का पता चलता है !!
समय दिखाई नहीं देता,
पर बहुत कुछ दिखा जाता है !!

शादी में सबसे बड़ा धोखा तो तब होता है,
जब गाय के गुण बताकर दुल्हे को शेरनी थमा दी जाती है !!
वक्त भी सिखाता है और गुरु भी,
पर दोनों में फर्क सिर्फ इतना है की,
गुरु सिखाकर इम्तेहान लेता है और,
वक्त इम्तेहान लेकर सिखाता है !!






पैसे का अभाव ही सारे पापों की जड़ है !!
संपत्ति का सृजन गलत नहीं है,
लेकिन सिर्फ अपनी भलाई के लिए
पैसे से प्यार करना गलत है !!
एक बुद्धिमान मनुष्य के दिमाग में
पैसा होना चाहिए लेकिन दिल में नहीं !!

Giyan se relative
भरी बरसात में उड़ के दिखा ए माहिर परिंदे,
खुले आसमान में तो तिनके भी सफ़र कर लेते है !!
.बिना जोखिम उठाये कुछ भी नहीं मिलता,
और जोखिम वही उठाते है जो साहसी होते है !!
चुनौतियों का स्वीकार करो,
क्यूंकि इससे या तो
सफलता मिलेगी या शिक्षा !!

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एक बुद्धिमान मनुष्य के दिमाग में
पैसा होना चाहिए लेकिन दिल में नहीं !!
जीवन में सफलता पाना है तो अपनाएं चाणक्य के ये सूत्र, कभी नही होगी हार https://apkafayda.business.blog/
Mahendestb@gmail.com , app hame is par mail kar sakte hain.
लाइव हिंदी खबर :-कहते हैं कि इंसान को कामयाब दो ही चीजे बना सकती हैं, पहला उसकी मेहनत और दूसरा उसकी किस्मत। लेकिन कई बार मेहनत और किस्मत दोनों ही साथ नहीं देती हैं जिस कारण व्यक्ती अपने काम में विफल हो जाता है। और जब यह बार-बार होने लगे तो वह टूटने लगता है। अगर वास्तविक जिंदगी में हम सफल बनना चाहते हैं और सफलता को टिकाए रखना चाहते हैं तो आपको महान कूटनीतिज्ञ चाणक्य द्वारा सुझाए गए कुछ सफलता के मंत्र पर गौर करना चाहिए। इस मंत्र के बाद न तो आप विफल होंगे और न ही आप टूटेंगे। तो आइए जानते हैं आचार्य चाणक्य द्वारा बताए गए सफलता सूत्रों के बारे में।
चाणक्य के मुताबिक व्यक्ति को हमेशा यह पता होना चाहिए कि उसका वर्तमान में वक्त कैसा चल रहा है। कभी भी अपने समय को देखकर किसी नए काम को करने का फैसला लेना चाहिए। आपको हमेशा यह ध्यान में रखना चाहिए कि अगर वर्तमान बहुत अच्छा चल रहा है तो नए-नए काम और नए अनुभव लेना चाहिए। वहीं दूसरी तरफ अगर वर्तमान बुरा चल रहा है तो आपको धीरज यानी धैर्य के साथ काम लेना चाहिए क्योंकि जल्दबाजी में हर काम गड़बड़ हो जाता है और ऐसे समय में आपकी मेहनत पर पानी फिरने लगता है।
सफलता के लिए अपने दोस्त और दोस्त की शक्ल में मौजूद दुश्मन को पहचानने का गुण विकसित करना चाहिए। अक्सर लोग सामने दिख रहे दुश्मन से तो सावधान होकर काम कर लेते हैं, लेकिन दोस्त के रूप में साथ चल रहे दुश्मन से धोखा खा जाते हैं। कामयाबी के लिए सच्चे दोस्त की मदद मांग कर आगे बढ़ें। अगर मित्र के वेश में आपने शत्रु से मदद मांग लिया तो आपकी मेहनत बेकार हो सकती है।
हर चीज आपके विचार पर निर्भर करता है। किसी लक्ष्य को पाने के लिए आपको जगह, हालात और साथ में काम करने वाले लोगों के बारे में पूरी जानकारी रखनी चाहिए। वो क्या सोचते हैं ये आपको उन्हें देखकर ही समझ जाना चाहिए। ऐसा करने से सफलता का प्रतिशत सौ फीसदी बढ़ जाता है।
जीवन में सफलता के लिए धन के आय और व्यय की सही-सही जानकारी होनी चाहिए। व्यक्ति को कभी भी आवेश में आकर आय से ज्यादा खर्च कतई नहीं करना चाहिए। सही बचत करने की आदत डालती चाहिए, क्योंकि बुरे समय में यही धन काम आता है।
व्यक्ति को हमेशा अपनी शक्ति का ध्यान रखना चाहिए और उसी के हिसाब से काम करना चाहिए। लेकिन ध्यान रहे कि क्षमता से अधिक काम करने पर नाकामयाब होने की संभावना बढ़ जाती है। इससे आपके व्यक्तित्व पर बुरा असर पड़ता है क्योंकि हर चीज की अपनी एक सीमा होती है।

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App sabhi ko yah jankar atti khusi hogi dehli dtc bason main ledis free main puri dehli ghum sakti hain. To jab bhi app dehli ki tarf jaye to metro se nhi bas se travel karn
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Kadvi par achchi baten. ♡☆
सत्य को कहने के लिए
किसी शपथ की जरुरत नहीं होती,
नदियों को बहने के लिए
किसी पथ की जरुरत नहीं होती,
जो बढ़ते है ज़माने में अपने मजबूत इरादों पर,
उन्हें अपनी मंजिल पाने के लिए
किसी रथ की जरुरत नहीं होती !!
आदमी की सोच और नियत
समय समय पर बदलती रहती है,
चाय में मख्खी गिर जाए तो चाय फेंक देता है,
और अगर देशी घी में मख्खी गिर जाए तो
मख्खी को फेंक देता है !!
उनकी परवाह मत करो
जिनका विश्वास वक्त के साथ बदल जाए,
परवाह सदा उनकी करो,
जिनका विश्वास आप पर तब भी रहे
जब आपका वक्त बदल जाए !! .
खाने में कोई ज़हर घोल दे तो एक बार उसका इलाज है,
लेकिन कान में कोई ज़हर घोल दे तो उसका कोई इलाज नहीं है !!
अगर लोग केवल जरुरत पर
ही आपको याद करते है तो
बुरा मत मानिये बल्कि गर्व कीजिये,
क्योंकि मोमबत्ती की याद तभी आती है,
जब अंधकार होता है !!
आलसी लोगो का कोई,
वर्त्तमान और भविष्य नहीं होता !!
इन्तजार करने वालों को सिर्फ उतना ही मिलता है,
जितना कोशिश करने वाले छोड़ देते है !!/
जीवन का सत्य (धनवान सेठ की कहानी)
क्यों पढ़े – क्या आपने कभी सोचा है कि मेरे इस मानवीय जीवन का क्या अस्तित्व है। मेरे लिए इस मानव जीवन, जो कि ईश्वर की अनमोल देन है उसकी क्या महत्त्वता है। क्या आपने कभी अपने आप को गहराड़यों से जानने का, समझने का प्रयास किया है मानवीय तौर पर कहा जाए तो हम इस जीवन को सिर्फ अपनी जरुरतों को पूरा करते-करते ही व्यतीत कर देते हैं। एक मनुष्य के लिए उसकी जरूरत क्या है रोटी, कपड़ा और मकान यही न, पर यह असल सत्य नहीं है।
हर मनुष्य का जन्म इस धरती पर एक विशेष कारण से होता है। जिसे हम धीरे-धीरे समय के साथ समझते चले जाते हैं। कई लोग अपने इस मानवीय जीवन के सत्य को समझ ही नहीं पाते क्योंकि वे हमेशा नकारात्मक सोच ही रखते हैं। यही अंतर है नकारात्मक और सकारात्मक सोच में, जहाँ नकारात्मक सोच हमारे लिए समस्याँए पैदा करती है वही सकारात्मक सोच हमारे लिए नए अवसर लाती है। आइए हम जीवन के इस सत्य को एक कहानी द्वारा समझने की कोशिश करते हैं।
धनवान सेठ की कहानी
एक गांव में एक बहुत बड़ा धनवान व्यक्ति रहता था। लोग उसे सेठ धनीराम कहते थे। उस सेठ के पास प्रचुर मात्रा में धन संपत्ति थी जिसके कारण उसके सगे-संबंधी, रिश्तेदार,भाई-बहन हमेशा उसे घेरे रहते थे वे उन्हीं के राग अलापते रहते थे, सेठ भी उन सभी लोगों की काफी मदद करता था। तभी अचानक कुछ समय बाद सेठ को भंयकर रोग लग गया।
इस भयंकर बीमारी का सेठ ने बहुत उपचार करवाया लेकिन इसका इलाज नहीं हो सका। आख़िरकार सेठ की मृत्यु हो गई। यमदूत उस सेठ को अपने साथ ले जाने के लिए आ गए, जैसे ही यमदूत सेठ को ले जाने लगे तभी सेठ थोड़ी दूर जाकर यमदूतो से प्रार्थना करने लगे कि “मुझे थोड़ा सा समय दे दो, मैं लौटकर तुरंत आता हूँ” दूतों ने उसे अनुमति दे दी।
सेठ लौटकर आया, चारो ओर नज़रे घुमायीं और वापस यमदूतों के पास आकर बोला- “शीघ्र चलिए” यमदूत उसे इस प्रकार अपने साथ चलने के लिए तैयार देखकर चकित रह गए और सेठ से इसका कारण पूछा। सेठ ने निराशा भरे स्वरों में कहा- “मैंने हेराफेरी करके अपार धन एकत्रित किया था, लोगों को खूब खिलाया-पिलाया और उनकी बहुत मदद भी की, सोचा था कि वो मेरा साथ कभी नहीं छोडेंगे। अब जब मैं इस दुनिया को सदा के लिए छोड़ कर जा रहा हूँ, तो वे सब बदल गए है मेरे लिए दुखी होने के बजाय, ये अभी से मेरी संपत्ति को बांटने की योजना बनाने लगे है किसी को मेरे लिए जरा-सा भी अफसोस नहीं है।”
सेठ की बात सुनकर यमदूत बोले- “इस संसार में प्राणी अकेला ही आता है और अकेला ही जाता है, इंसान जो भी अच्छा या बुरा कर्म करता है उसे इसका परिणाम स्वयं ही भुगतना पड़ता है, हर प्राणी इस सत्य को समझता तो है पर देर से।”
जीवन की सीख
हम इस बात को अपने जीवन में भी देख रहे हैं। लोग जीवन के सत्य को भूलकर मानव द्वारा बनाए गए जाल जैसे लालच, रूपए-पैसा, बुराई आदि तले दब गए हैं।
आप जो भोजन ग्रहण करते है वह पेट में 4 घंटे रहता है, जो वस्त्र पहनते है वह 4 महीने रहता है, लेकिन जो ज्ञान आप हासिल करते हैं वह आपके अंतिम सांस तक साथ रहता है और संस्कार बनकर आपकी अगली पीढी तक पहुँचता है, ज्ञान का बीज कभी व्यर्थ नहीं जाता। जो है जितना है सफल करते चलो, सफल करने से ही सफलता मिलती है।
हर व्यक्ति को सकारात्मक तरीके से देखो, सुनो और समझो। हम जितना ज्यादा पढ़ते है, सुनते है, समझते है, हमें अपनी कमियों का उतना ही ज्यादा एहसास होता है और इसी कमी को दूर करके हम सफलता की मंजिल की और अपने कदम बढ़ाते चले जाते हैं।
“क्या लेकर आया था जो क्या लेकर जाएगा,
कर कुछ ऐसा जाओ कि लोग तुम्हें याद रख जाएगें।”
आपको बस यह करना है
1. कोशिश करो कि गलत काम नहीं करना
2. किसी चीज को लेकर ज्यादा लालची नही होना है
3. Life को Enjoy करते चलो
4. अपने सुझाव और सवाल मुझे Playstore पर comment करके बताइए जिससे कि इस मैं इस App को आपके लिए और बेहतर कर संकू।



जीवन में सफलता पाना है तो अपनाएं चाणक्य के ये सूत्र, कभी नही होगी हार https://apkafayda.business.blog/
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लाइव हिंदी खबर :-कहते हैं कि इंसान को कामयाब दो ही चीजे बना सकती हैं, पहला उसकी मेहनत और दूसरा उसकी किस्मत। लेकिन कई बार मेहनत और किस्मत दोनों ही साथ नहीं देती हैं जिस कारण व्यक्ती अपने काम में विफल हो जाता है। और जब यह बार-बार होने लगे तो वह टूटने लगता है। अगर वास्तविक जिंदगी में हम सफल बनना चाहते हैं और सफलता को टिकाए रखना चाहते हैं तो आपको महान कूटनीतिज्ञ चाणक्य द्वारा सुझाए गए कुछ सफलता के मंत्र पर गौर करना चाहिए। इस मंत्र के बाद न तो आप विफल होंगे और न ही आप टूटेंगे। तो आइए जानते हैं आचार्य चाणक्य द्वारा बताए गए सफलता सूत्रों के बारे में।वर्तमान का हमेशा रखें ख्याल
चाणक्य के मुताबिक व्यक्ति को हमेशा यह पता होना चाहिए कि उसका वर्तमान में वक्त कैसा चल रहा है। कभी भी अपने समय को देखकर किसी नए काम को करने का फैसला लेना चाहिए। आपको हमेशा यह ध्यान में रखना चाहिए कि अगर वर्तमान बहुत अच्छा चल रहा है तो नए-नए काम और नए अनुभव लेना चाहिए। वहीं दूसरी तरफ अगर वर्तमान बुरा चल रहा है तो आपको धीरज यानी धैर्य के साथ काम लेना चाहिए क्योंकि जल्दबाजी में हर काम गड़बड़ हो जाता है और ऐसे समय में आपकी मेहनत पर पानी फिरने लगता है।
सफलता के लिए अपने दोस्त और दोस्त की शक्ल में मौजूद दुश्मन को पहचानने का गुण विकसित करना चाहिए। अक्सर लोग सामने दिख रहे दुश्मन से तो सावधान होकर काम कर लेते हैं, लेकिन दोस्त के रूप में साथ चल रहे दुश्मन से धोखा खा जाते हैं। कामयाबी के लिए सच्चे दोस्त की मदद मांग कर आगे बढ़ें। अगर मित्र के वेश में आपने शत्रु से मदद मांग लिया तो आपकी मेहनत बेकार हो सकती है।
हर चीज आपके विचार पर निर्भर करता है। किसी लक्ष्य को पाने के लिए आपको जगह, हालात और साथ में काम करने वाले लोगों के बारे में पूरी जानकारी रखनी चाहिए। वो क्या सोचते हैं ये आपको उन्हें देखकर ही समझ जाना चाहिए। ऐसा करने से सफलता का प्रतिशत सौ फीसदी बढ़ जाता है।
जीवन में सफलता के लिए धन के आय और व्यय की सही-सही जानकारी होनी चाहिए। व्यक्ति को कभी भी आवेश में आकर आय से ज्यादा खर्च कतई नहीं करना चाहिए। सही बचत करने की आदत डालती चाहिए, क्योंकि बुरे समय में यही धन काम आता है।
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ऑटो डेस्क: 2022 में कुछ दिग्गज बाइक निर्माता कंपनियां भारत में अपने प्रोडक्ट लॉन्च करने के लिए तैयार है। इन सभी बाइक्स को लेकर अनुमान लगया जा रहा है कि 2022 के मिड तक इन्हें लॉन्च कर दिया जाएगा। आइए जानते हैं कि कौन-सी कंपनी कौन सा प्रोडक्ट लॉन्च करने जा रही है-
Royal Enfield Scram 411:चेन्नई स्थित बाइक निर्माता रॉयल इनफील्ड ने इंडियन मार्केट के लिए इसी साल 2021 रॉयल इनफील्ड हिमालयन को लॉन्च किया था। अब कंपनी अगले साल अपना एक नया और पहले से ज़्यादा किफायती एडिशन लॉन्च करने के लिए तैयार है। यह नई बाइक हिमालयन के तुलना में ज़्यादा रोड-ऑरिऐंटेड है और इसे 2022 फरवरी में लॉन्च किया है।
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न्यू-जनरेशन KTM RC 390: बजाज ऑटो अगले साल भारत में अपनी न्यू-जनरेशन स्पोर्ट बाइक rc 390 लॉन्च करने जा रही है। कंपनी इस प्रोडक्ट को 2022 की पहली तिमाही तक लॉन्च करने वाली है। यह बाइक नई RC 390 के मुकाबले थोड़ी ज़्यादा महंगी होगी।
Royal Enfield Hunter 350: Scram 411 के बाद रॉयल एनफील्ड का अगला प्रोडक्ट Hunter 350 होगा,जिसे मिड 2022 कर लॉन्च किए जाने का उम्मीद है। कंपनी की यह बाइक Metor350 पर बेस्ड होगी। जिसमें Metor350 के समान इंजन और प्लेटफॉर्म का भी उपयोग किया जाएगा।
TVS Zeppelin क्रूजर: TVS के नए Zeppelin क्रूजर को लेकर उम्मीद जताई जा रही है कि इसे होसुर स्थित ऑटोमेकर इसे 2022 के मिड तक लॉन्च कर सकती है। पर इसके बारे में कोई भी ऑफिशियली जानकारी सामने नहीं आई है। यह कंपनी द्वारा ऑटो एक्सपो 2018 में पेश किए गए Zeppelin क्रूजर का प्रोडक्शन-स्पेक वर्जन हो सकता है।
Royal Enfield Shotgun (SG 650): 2022 में लॉन्च होने वाली बाइक्स की लिस्ट में अगला नाम Royal Enfield की Shotgun (SG 650) का शामिल है। इस प्रोडक्ट के अलावा कंपनी इस अपकमिंग ईयर में Hunter 350 और Scram 411 को भी लॉन्च करने जा रही है। हाल ही में कंपनी ने पिछले महीने EICMA में SG 650 प्रोटोटाइप को शोकेस किया था। इस बाइक को लेकर अनुमान लगया जा रहा है कि 2022 के त्योहारी सीजन तक इसे भारत में लॉन्च किया जाएगा। इसी के साथ यह बाइक मौजूदा 650 ट्विन्स से प्लेटफार्म साझा करेगी।
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वैशम्पायन जी कहते हैं: सुभगे! इसी विषय में इस पुरातन इतिहास का भी उदाहरण दिया जाता है। सात होताओं के यज्ञ का जैसा विधान है, उसे सुनो। नासिका, नेत्र, जिह्वा, त्वचा और पाँचवाँ कान, मन और बुद्धि- ये सात होता अलग-अलग रहते हैं। यद्यपि ये सभी सूक्ष्म शरीर में ही निवास करते हैं तो भी एक दूसरे को नहीं देखते हैं। शोभने! इन सात होताओं को तुम स्वभाव से ही पहचानों।
ये नासिका आदि सात होता एक दूसरे के गुणों को कभी नहीं जान पाते हैं (इसीलिये कहा गया है कि ये एक दूसरे को नहीं देखते हैं)।जीभ, आँख, कान, त्वचा, मन और बुद्धि- ये गन्धों को नहीं समझ पाते, किंतु नासिका उसका अनुभव करती है। नासिका, कान, नेत्र, त्वचा, मन और बुद्धि- ये रसों का आस्वादन नहीं कर सकते। केवल जिह्वा उसका स्वाद ले सकती है। नासिका, जीभ, कान, त्वचा, मन और बुद्धि- ये रूप का ज्ञान नहीं प्राप्त कर सकते, किंतु नेत्र इनका अनुभव करते हैं। नासिका, जीभ, आँख, कान, बुद्धि और मन- ये स्पर्श का अनुभव नहीं कर सकते, किंतु त्वचा को उसका ज्ञान होता है। नासिका, जीभ, आँख, त्वचा, मन और बुद्धि- इन्हें शब्द का ज्ञान नहीं होता है, किंतु कान को होता है। नासिका, जीभ, आँख, त्वचा, कान और बुद्धि- ये संशय (संकल्प-विकल्प) नहीं कर सकते। यह काम मन का है। इसी प्रकार नासिका, जीभ, आँख, त्वचा, कान, और मन- वे किसी बात का निश्चय नहीं कर सकते। निश्चयात्मक ज्ञान तो केवल बुद्धि को होता है।
मतलब हम जो कुछ भी कार्य किसी इंद्री विशेष से करते हैं वह सिर्फ वो ही इंद्री कर सकती है, दूसरी नहीं परन्तु उसके परिणाम का बोध सिर्फ बुद्धि को ही होता है। अब आप समझ गये होंगे कि कहा जाता है “विद्वान और मूर्ख दोनों दिखने में एक होते हैं” क्यों?? क्योकिं मूर्ख कुछ जानता नहीं अत: क्या बोले। वहीं विद्वान सोंचता है कि एक होता का अनुभव या ज्ञान दूसरे होता के द्वारा कैसे बताया जा सकता है। अत: चुप। जैसे जिसने लड्डू नहीं खाया वह स्वाद कैसे बतायेगा। जिसने खा लिया वो भी शब्दों में कैसे वर्णन कर सकता है। ब्रह्मज्ञान कुछ ऐसे ही है। अपना अनुभव मुख से शब्दों में कैसे बता पाओगे।
इसीलिये ब्रह्म वर्णन के बाद बोला जाता है नेति नेति। मतलब न इति जो समाप्त नहीं।
भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं:
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्। अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते॥ (6/35)
हे महाबाहु कुन्तीपुत्र! इसमे कोई संशय नही है कि चंचल मन को वश में करना अत्यन्त कठिन है, किन्तु इसे सभी सांसारिक कामनाओं के त्याग (वैराग्य) और निरन्तर अभ्यास के द्वारा वश में किया जा सकता है।
भगवान ने हमें समस्त भौतिक कर्मों को करने के लिये तीन वस्तु दी हैं, (१) बुद्धि, (२) मन और (३) इन्द्रियों का समूह यह शरीर। बुद्धि के द्वारा हमें जानना होता है, मन के द्वारा हमें मानना होता है और इन्द्रियों के द्वारा हमें करना होता है।
इसके लिये पहले इच्छा और कामना का भेद समझना होगा, कामनाओं का जन्म बुद्धि के द्वारा होता है, और इच्छाओं का जन्म मन में होता है। बुद्धि का वास स्थान मष्तिष्क होता है और मन का वास स्थान हृदय होता है, बुद्धि विषयों की ओर आकर्षित होकर कामनाओं को उत्पन्न करती हैं और इच्छायें प्रारब्ध के कारण मन में उत्पन्न होती हैं। कामना जीवन में कभी पूर्ण नहीं होती है, इच्छा हमेशा पूर्ण होती हैं।
बुद्धि के अन्दर विवेक होता है, यह विवेक केवल मनुष्यों में ही होता है, अन्य किसी योनि में नहीं होता है। यह विवेक हंस के समान होता है। इस विवेक रूपी हंस के द्वारा “जल मिश्रित दूध” के समान “शरीर मिश्रित आत्मा” में से जल रूपी शरीर और दूध रूपी आत्मा का अलग-अलग अनुभव किया जाता है, जो जीव आत्मा और शरीर का अलग-अलग अनुभव कर लेता है तो वह जीव केवल दूध रूपी आत्मा का ही रस पान करके तृप्त हो जाता है और शरीर रूपी जल की आसक्ति का त्याग करके वह निरन्तर आत्मा में ही स्थित होकर परम आनन्द का अनुभव करता है।
मनुष्य शरीर रथ के समान है। आपने देखा होगा कृष्ण अर्जुन का रथ हांकते हुये। इस रथ में घोडे इन्द्रियाँ रूप हैं, लगाम रूपी मन है, बुद्धि सारथी रूपी है और तुम अर्जुन हो। परंतु जब तुम बुद्धि से जान लेते हो अरे सारथी तो ब्रह्म है और तब तुम उसको समर्पित हो जाते हो तब तुम्हारा रथ सही दिशा में चलकर जीवन रूपी कुरूक्षेत्र में विजयी हो जाता है। जब मानव जीव कर्ता – भाव में अहंकार से ग्रसित रहता है। अपना रथ खुद चला रहा हूं यह सोंचता है माया मोह में फंसा रहता है। आत्मा के द्रृष्टा-भाव मुक्त रहता है। तब तक जीव का विवेक सुप्त अवस्था में रहता है तब तक जीव स्वयं को कर्ता समझकर शरीर रूपी रथ के इन्द्रियों रूपी घोड़ो को मन रूपी लगाम से बुद्धि रूपी सारथी के द्वारा चलाता रहता है, तो जीव कर्म के बंधन में फंसकर कर्म के अनुसार सुख-दुख भोगता रहता है।
बिनु सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।
जब जीव का विवेक भगवान की कृपा से गुरू की कृपा से सत्संग के द्वारा जाग्रत होता है तब जीव मन रुपी लगाम को बुद्धि रुपी सारथी सहित आत्मा को सोंप देता है तब जीव अकर्ता भाव में द्रृष्टा-भाव में स्थित होकर मुक्त हो जाता है।
जब तक जीव के शरीर रूपी रथ का बुद्धि रूपी सारथी मन रुपी लगाम को खींचकर नही रखता है तो इन्द्रियाँ रुपी घोंडे अनियन्त्रित रूप से विषयों की ओर आकर्षित होकर शरीर रुपी इस रथ को दौड़ाते ही रहते हैं, और अधिक दौड़ने के कारण शरीर रुपी रथ शीघ्र थककर चलने की स्थिति में नही रह जाता है फिर एक दिन काल के रूप में एक हवा का झोंका आता है और जीव को पुराने रथ से उड़ाकर नये रथ पर ले जाता है।
आत्मा ही जीव का परम मित्र है, वह जीव को कभी भी अकेला नहीं छोड़ता है, वही जीव का वास्तविक हितैषी है, इसलिये वह भी जीव के साथ नये रथ पर चला जाता है। यह क्रम तब तक चलता रहता है जब तक जीव स्वभाव द्वारा बुद्धि सहित मन को आत्मा को नहीं सोंप देता है।
मन चंचल कभी नहीं होता है, बुद्धि चंचल होती है, बुद्धि की चंचलता के कारण ही मन चंचल प्रतीत होता है। क्योंकि मन बुद्धि के वश में होता है बुद्धि मन को अपने अनुसार चलाती है तो बुद्धि की आज्ञा मान कर मन उधर की ओर चल देता है, हम समझतें हैं मन चंचल है।
मनुष्य को अपने मन रूपी दूध का बुद्धि की मथानी बनाकर काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि असुरों और धैर्य, क्षमा, सरलता, संकल्प, सत्य आदि देवताओं द्वारा अहंकार की डोरी से मथकर भाव रूपी मक्खन का भोग प्रभु को लगाना चाहिये। यही माखन कृष्णा को अत्यन्त पसन्द है। जो छाछ बचेगी वह कान्हा आपसे स्वयं माँग कर खुद ही पी लेगा, मन रूपी दूध का कोई भी अंश नहीं शेष नहीं रहता है। यही मनुष्य जीवन की सर्वोच्च सिद्धि है।
मन आत्मा का साधन है। इसके द्वारा ही आत्मा की इच्छित क्रियाएं होती है। आत्मा का मन से, मन का इन्द्रियो से ओर इन्द्रियो का विषयो से (बाहरी संसार से) सम्पर्क होने पर ही आत्मा को ज्ञान तथा उसकी इच्छित क्रियाएं होती है।ज्ञान आत्मा का गुण है, मन का नही।
यस्मान् न ऋते किच्चन कर्म क्रियते। (यजुर्वेद )
अर्थात् – यह मन ऐसा है जिसके बिना कोई भी काम नही होता। यही कारण है कि इसके सम्पर्क न होने पर हम देखते हुए भी नही देखते तथा सुनते हुए भी नही सुनते। यह आत्मा के पास ह्रदय मे रहता है। वेद मे इसे (ह्रदय मे निवास वाला ) कहा गया है। यह जड़ पदार्थ है। इसीलिए आत्मा से पृथक होकर कोई भी क्रिया नही कर सकता। यह आत्मा के साथ जन्म जन्मानतर मे रहता है।
मृत्यु पर भी आत्मा के साथ दूसरे शरीर मे जाता है। इसके पश्चात् आत्मा को नया मन मिलता है। इसे अमृत इसलिए कहा गया है कि यह शरीर के नाश होने पर नष्ट नही होता। क्योकि यह एक जड पदार्थ है। इसलिये इस पर भोजन का प्रभाव पडता है। जैसा खावे अन वैसा होवे मन। यह संस्कारो का कोष है। सभी संस्कार इस पर पड़ते है तथा वही जमा होते है। जो संस्कार प्रबल होते है वे ही उभर कर सामने आते है। जो दुर्बल होते है वे दबे पड़े रहते है। जैसे किसी गढ्ढे मे बहुत प्रकार के अनाज डाले जाये पहले गेंहू, फिर चने, फिर चावल उसके उपर जौ, उसके उपर मूंग, उड़द आदि। देखने वाले को वही दिखाई देगा जो सबसे उपर होगा, नीचे का कुछ भी दिखाई नही देगा ।
वैधक शास्त्र सुश्रुत के अनुसार -इसमें मे सात्विक गुण प्रधान होने पर मनुष्य की स्थिति -अक्रूरता, अनादि वस्तु का ठीक ठीक वितरण,सुख, दु:ख मे एक सम,पवित्रा, सत्य, न्याय प्रयता शान्त प्राकृति ज्ञान ओर धैर्य।
मन रजोगुण प्रधान होने पर :-1. घूमने का स्वभाव 2. अधीरता 3. अभिमान 4. असत्य भाषण 5. क्रूरता 6. ईष्या 7. द्वेष 8. दम्भ 9. क्रोध 10. विषय सम्बन्धी इच्छा।
तमस मन के गुण :- 1. बुध्दि का उपयोग न करना 2. आलस्य- काम करने की इच्छा न होना 3. प्रमाद – अधिक नींद लेने की इच्छा 4. ज्ञान न होना 5. दुष्ट बुद्धि रहना।
महाऋषि मनु लिखते है: यदि कोई मनुष्य किसी दुष्कर्म से छुटकारा चाहता है तो मन से उस दुष्कर्म को खूब भर्त्सना (सराहना का उलट) किया करे। जैसे-जैसे वह दुष्कर्म की निन्दा करेगा वैसे वैसे उस दुष्कर्म से छूटता चला जायेगा।
हमारे शरीर में मन के कार्य करने की गति बहुत ही तेज है, यह एक सेकन्ड में हजारो मील दूर पुहंच जाता है। जैसे कि किसी का बेटा या बेटी अथवा भाई बंदु प्रदेश में रहते है तो उस के बारे में सोचने लग जायेगा। हम को वहा जाने में दो दिन लग सकते है, लेकिन मन उस के बारे झट पट सोचने लग जाता है। यह एक मिन्ट भी टिक कर नहीं बैठता यह कुछ न कुछ कार्य करता रहता है। मन हम को बाहरी दुनिया में लगा कर रखता है, यह कार्य करता रहता है क्या आप सब को पता है की हमारा जन्म क्यों हुआ है?
हमारा जन्म भक्ति करने और भगवान की प्राप्ति करने की लिए हुआ है। जो हमारा मन है यह हमको भक्ति करने नहीं देता, यह हमको जो संसार की बाहरी वस्तुए दिखाई देती है उसमे लगा कर रखता है , लेकिन यह सब नश्वर है एक दिन सब नष्ट हो जाना है यह सब झूठ है इस झूठ से ऊपर उठो, यह सब मोह माया का जंजाल है, इसमें हम सब फसते चले जाते है। मन के कारण हम सब परेशान रहते है।
जब नवजात बच्चा होता है, कभी हसता है कभी रोता है। सवा महीने के बच्चे को कहते है की इसे पिछले जन्म का सब याद है जैसे जैसे वह बड़ा होता है हम उसे नए नए खिलोने बाजार से लेकर देते हैं। जिसके कारण वह पिछले जन्मो का सब भूलता जाता है। इस संसार के जाल में फसना शुरू हो जाता है, वस्तुओ में लगाव होना शुरू हो जाता है।
जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता है , लालच होना शुरू होता है, जब हम बच्चे को कोई खिलौना देते है और वह उस खिलोने से खेलता है तो बहुत खुश होता है, अगर वो टूट जाता है तो वो रोता है। वह जिद्द करता है फिर हम उसे नया खिलौना लेकर देते है, तो वह खुश हो जाता है।
इसी प्रकार बड़ो के साथ होता है, यह काल का लोक है यहां का राजा काल भगवान है जिसे ब्रह्मा कहते है, इसलिए जो हमारा मन है वह ब्रह्मा का है। क्यों?? क्योकिं ब्रह्मा निर्माण करता है। यही काम हम भी करते हैं। चाहे वह विनाश के लिये पर हम करते हैं।
स्वामी विष्णु तीर्थ जी महाराज कहते हैं “यह जगत हमारे मन का विस्तार है”। यह जो मन है हमारी इन्द्रियों को आपने अधीन बना कर रखता है और उनसे वही काम करवाता है जो चाहता। अब मन को बुद्धि के अधीन करना है, हमारे ऊपर मन भारी है। कई लोग कहावत कहते है, कोई आदमी शराब पीता हो या कोई नशा करता हो कहते है इसकी बुद्धि भृष्ट हो गयी है। वो आदमी मन के अधीन होता है।
हमें बुद्धि के अधीन मन को करना है। वह तभी होगा जब हम कर्म इन्द्रियां का मुख अंदर की तरफ मोड़ेंगे, हम आंतरिक होंगे। हमारे दो मन होते है, एक बाहरी मन और एक आंतरिक मन। हमें बाहरी मन को छोड़ना है और आंतरिक मन को पकड़ना है। हमने अंतर मन की आवाज़ को सुनना है। बाहरी वस्तुओं में लगाव स्वत: कम हो जायेगा।
मन को मारने का तरीका यह है, छोटी छोटी बातो से अपने मन को अजमाना शुरू करो। जैसे स्वामी विवेकानंद को केला खाने का मन हुआ। तब उन्होने केले खरीदे। गूदा फेंककर छिलका खाने लगे और मन को डांटते हुये बोलते जाते “रे खा केला”।
1) जैसे जैसे बुद्धि ऊंची उठती है वैसे वैसे हम अपने आप को हल्का महसूस करते हैं। जो हमारे अंदर विचार आते हैं वह हमारे ऊपर मन के भारी होने के कारण आते हैं।
2) मन को कुछ भी सोचने ना दो, जिस भी इष्ट देव को आप मानते हैं उस का मंत्र जाप नाम जप करो। ऐसा करने से आप मन के ऊपर दो तरफ से वार कर रहे हो, एक तो अन्दर से जाप कर के, दूसरा मन कि अन्दर से न चलने दी।
बुद्धि हमको उलझाती नहीं है वह हमसे ठीक कार्य ही करवाती है। बुद्धि द्वारा किये गए सभी कार्य ठीक होते हैं। तभी तो कहते हैं सोच समझ कर कार्य करो। मन को हराने का एक और तरीका है, आपके पास करने के लिए बहुत सारे काम हैं, और हम परेशान हैं, कौन
सा काम पहले करें, सबसे पहले सारे कामो की एक लिस्ट बना लें, फिर बुद्धि द्वारा आराम से सोचें की कौन सा काम पहले करना है और कौन सा बाद में, अगर आप बुद्धि से काम करेंगे तो 10 में से 5 काम चुटकी बजा कर ही कर लेंगे। हो सकता है की आप सारे के सारे काम ही कर लें। यह सारे काम बुद्धि द्वारा ही होंगे, आप कभी परेशान नहीं होंगे, ऐसा करने बुद्धि ऊंची उठती है और मन हारता है।
मन ब्रह्मा का है, बुद्धि पूर्ण परमात्मा की है, हम ने पूर्ण परमात्मा के पास जाना है। मन को हराना है, ऐसा करो आप जीत जाओगे और आप ऊंचा उठ जाओगे, मन पर आपकी विजय हो जाएगी, आप सभी सुखी रहोगे, हमे सादा और सात्विक भोजन खाना चाहिए, मीट अंडा शराब आदि नशीले पदार्थ नहीं खाने चाहिए, यह चीजे हमारी बुद्धि को ऊंचा नहीं उठने देतीं।
बुद्धि को ऊंचा उठाने के लिए सबसे पहले अपने विचारो को दृढ बनाना चाहिए, किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पहले उसकी रूप रेखा और योजना अच्छी तरह से बना लेनी चाहिए, उसके बाद जब हम उस कार्य को प्रारंभ करें तो हर हालत में उस कार्य को पूरा करने की इच्छा मन में लेकर ही कार्य प्रारंभ करें, और जब तक वह कार्य पूरा ना हो जाये तब तक हमारे मन में किसी प्रकार की भी दुर्बलता या कमजोरी ना आवे, इसी स्थिति में ही हम अपने जीवन में सफलता हासिल कर सकते है, कार्य अच्छा और ऊंचे विचारो वाला होना चाहिए, जिस से आप का तो फायदा होगा ही दूसरों को भी फायदा मिलेगा।
जिसको हम मन समझते हैं वह सत्वगुणी, रजोगुणी, तमोगुणी मन आत्मा नहीं है। यह मन जिसका प्रतिबिम्ब बनकर सामने आया है वह भीतर छिपे हुए मूल मन का बिम्ब-रूप है। वही आत्मा है। आनन्द-विज्ञान का वह सहचारी है, अत: व्यवहार में जीवन के तीन स्तर ही कार्यरत दिखाई देते हैं।
शरीर और बुद्धि का कार्यक्षेत्र बहुत सीमित है। शरीर यूं तो बुद्धि के निर्देश पर ही कार्य करता है, फिर भी मन अपनी इच्छाओं की अभिव्यक्ति शरीर के माध्यम से, इन्द्रियों के माध्यम से करता रहता है। शरीर का कार्य श्रम की श्रेणी में आता है। शरीर को यदि अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया जाए तो उसका प्रभाव भी सामने वाले के शरीर तक देखा जा सकता है।
बुद्धि का प्रभाव भी बुद्धि तक ही होता है। बुद्धि का कार्य तर्क पैदा करना है। व्यक्ति एक-दूसरे की बात को तर्क में डालता है, अपने तर्क को सही साबित करने के लिए हठ करता है अथवा अन्य तर्क प्रस्तुत करता है। शुद्ध बुद्धि सामने वाले व्यक्ति के मन को प्रभावित नहीं कर सकती। केवल श्रम की श्रेष्ठता बढा सकती है। उसे कौशल/शिल्प का रूप दे सकती है।
मन का प्रभाव व्यापक होता है। उसको किसी भाषा की आवश्यकता नहीं है। उसका कार्य भाव प्रधान है, अत: मन के कार्यो में भावों की अभिव्यक्ति जुडी रहती है। ये भाव ही श्रम और शिल्प को कला का रूप देते हैं। कला मन के भावों की अभिव्यक्ति का ही दूसरा नाम है। चाहे गीत, संगीत, नृत्य, चित्रकारी, कोई भी भाषा दी जाए, यदि उसमें भाव जुडे हैं तो उसका प्रभाव मन पर होगा ही, यह निश्चित है।
आपकी अभिव्यक्ति के साथ यदि मन का जुडाव नहीं है तो मान कर चलिए कि उसका प्रभाव सामने वाले व्यक्ति
इसी आत्म तत्व के मूल स्वरूप जानना ब्रह्म ज्ञान है। जब यह प्राप्त होता है तो योग होता है।
अच्छा दिखने के लिए नहीं,
किन्तु अच्छा बनने के लिए जिओ !!
अच्छा दिखने के लिए नहीं,
किन्तु अच्छा बनने के लिए जिओ !!





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